शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

बच्चे अपने मां-बाप से आगे जाएँ


दुनिया में भौतिक समृद्धि बढ़ती है, क्योंकि भौतिक समृद्धि को हम जहां हमारे मां-बाप छोड़ते हैं, उससे आगे ले जाते हैं। लेकिन मानसिक समृद्धि नहीं बढ़ती है क्योंकि मानसिक समृद्धि में हम अपने मां-बाप से आगे जाने को तैयार नहीं। आपके पिता जो मकान बना गए थे, लड़का उसको दो मंजला बनाने में संकोच अनुभव नहीं करता, बल्कि खुश होता है। बल्कि बाप भी खुश होगा कि मेरे लड़के ने मेरे मकान को दो मंजिल किया, तीन मंजल किया। लेकिन महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण जो वसीयत छोड़ गए हैं उनके मानने वाले इस बात से बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे कि किसी व्यक्ति ने गीता के आगे विचार किया, कि गीता के एक मंजिले झोपड़े को दो मंजिल का मकान बनाया है। नहीं, मन के तल पर जो मकान बाप छोड़ गए हैं उसके भीतर ही रहना जरूरी है, उससे बड़ा मकान नहीं बनाया जा सकता है। और इस बात की हजारों साल से चेष्टा चलती है कि कोई बच्चा बाप के आगे न निकल जाए।

इसकी कई तरकीबें हैं, कई व्यवस्थाएं हैं। इसीलिए दुनिया में समृद्धि बढ़ती है-भौतिक, लेकिन मानसिक दीनता बढ़ती चली जाती है। और जब मन छोटा हो और भौतिक समृद्धि ज्यादा हो तो खतरे पैदा हो जाते हैं। जिस भांति हम भौतिक जगत में अपने मां-बाप से आगे बढ़ते हैं, जरूरी है कि बच्चे मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी अपने मां-बाप को पीछे छोड़ दें। इसमें मां-बाप का अपमान नहीं, बल्कि इसी में सम्मान है। ठीक-ठीक पिता वही है, ठीक-ठीक पिता का प्रेम वही है कि वह चाहे कि उसका बच्चा हर दृष्टि से उसे पीछे छोड़ दे।...हर दृष्टि से उसे पीछे छोड़ दे!



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