शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

कोई भी मेरे ऊपर निर्भर नहीं है


तुम चाहो भी निर्भर होना तो मैं तुम्हें होने नहीं दूंगा। तुम्हारी निर्भर होने की इच्छा के कारण ही तुमने संगठित धर्म पैदा किए हैं। तुम्हारी निर्भर होने की इच्छा के कारण ही तुम सब तरह के चर्चों, संप्रदायों और पंथों के गुलाम हो गए हो। मनोविश्लेष्कों के अनुसार यह फादर-फिक्सेशन है, पिता से बंध जाना है क्योंकि बच्चा अपने माता-पिता पर बहुत ज्यादा निर्भर होता है।

यदि वह लड़का है तो वह मां से बंध जाता है, और वह बहुत बड़ी समस्या है। यदि वह लड़की है तो वह पिता से बंध जाती है। हर लड़की उसके पूरे जीवन अपने पति में पिता जैसा व्यक्ति ढूंढती रहेगी-और यह असंभव है। कुछ भी दोहराया नहीं जाता। तुम अपने पिता को पति की तरह नहीं ढूंढ सकते। इसीलिए हर स्त्री हताश है, कोई पति सही नहीं लगता। हर पुरुष निराश है-क्योंकि कोई भी स्त्री तुम्हारी मां नहीं होगी।

अब, यह बड़ी अजीब समस्या है। पति अपनी पत्नी में मां को ढूंढने का प्रयास कर रहा है, पत्नी अपने पति में पिता को ढूंढने का प्रयास कर रही है। वहां सतत संघर्ष है। शादी नरक की आग है। चूंकि वे पति की तरह, पत्नी की तरह दुखी हैं, उन्हें कहीं सांत्वना ढूंढनी होगी-किसी परमात्मा में, किसी पंडित में।

तुम परमात्मा को पिता क्यों कहते हो? और फिर देवियों को मां कहते हैं...ये बचपन के बंधन हैं। तुम उन पर निर्भर थे। कब तक तुम अपने माता-पिता के साथ चिपके रहोगे? पिता और मां चाहते हैं कि तुम आत्मनिर्भर होओ लेकिन उन्हें होश नहीं है कि उन्होंने एक ही बात सिखाई है: निर्भर होओ।

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