गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

त्याग का अर्थ है: पकड़ छोड़ दो


यह सूत्र यह कहता है, इतना ही कहता है, सीधी-सीधी बात कि जो छोड़ता है वह भोगता है। यह यह नहीं कहता कि तुम्हें भोगना हो तो तुम छोड़ना। यह यह कहता है कि अगर तुम छोड़ सके, तो तुम भोग सकोगे। लेकिन तुम भोगने का खयाल अगर रखे, तो तुम छोड़ ही नहीं सकोगे।

अदभुत है सूत्र। पहले कहा, सब परमात्मा का है। उसमें ही छोड़ना गया। जिसने जाना, सब परमात्मा का है, फिर पकड़ने को क्या रहा? पकड़ने को कुछ भी बचा। छूट गया। और जिसने जाना कि सब परमात्मा का है और जिसका सब छूट गया और जिसका मैं गिर गया, वह परमात्मा हो गया। और जो परमात्मा हो गया, वह भोगने लगा, वह रसलीन होने लगा, वह आनंद में डूबने लगा। उसको पल-पल रस का बोध होने लगा। उसके प्राण का रोआं-रोआं नाचने लगा। जो परमात्मा हो गया, उसको भोगने को क्या बचा? सब भोगने लगा वह। आकाश उसका भोग्य हो गया। फूल खिले तो उसने भोगे। सूरज निकला तो उसने भोगा। रात तारे आए तो उसने भोगे। कोई मुस्कुराया तो उसने भोगा। सब तरफ उसके लिए भोग फैल गया। कुछ नहीं है उसका अब, लेकिन चारों तरफ भोग का विस्तार है। वह चारों तरफ से रस को पीने लगा।

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