शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

साक्षी:समस्त धर्म-अनुभव की एकमात्र वैज्ञानिक आधारशिला - भाग 2


जब कोई भी अनुभव नहीं होता, और कोई दर्शन नहीं होता, और कोई दिखाई नहीं पड़ता, और कोई विषय नहीं रह जाता, और जब साक्षी अकेला रह जाता है, तब कठिनाई है भाषा में कहने की कि क्या होता है। क्योंकि हमारे पास अनुभव के सिवाय कोई शब्द नहीं है। इसलिए इसे हम कहते हैं आत्म-अनुभव, लेकिन अनुभव शब्द ठीक नहीं है। हम कहते हैं चेतना का अनुभव या ब्रह्म-अनुभव। लेकिन यह शब्द, कोई भी शब्द ठीक नहीं है; क्योंकि अनुभव उसी दुनिया का शब्द है, जिसको हमने तोड़ डाला। अनुभव उस द्वैत की दुनिया में अर्थ रखता है जहां दूसरा भी था, यहां अब कोई अर्थ नहीं रखता। यहां सिर्फ अनुभोक्ता बचा, साक्षी बचा।

इस साक्षी की तलाश ही अध्यात्म है।

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