गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

सब कुछ है



ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।।1।।

जगत में जो कुछ स्थावर-जंगम संसार है, वह सब ईश्वर के द्वारा आच्छादनीय है। उसके त्याग-भाव से तू अपना पालन कर; किसी के धन की इच्छा कर।।1।।

ईशावास्य उपनिषद की आधारभूत घोषणा: सब कुछ परमात्मा का है। इसीलिए ईशावास्य नाम है : ईश्वर का है सब कुछ।

मन करता है मानने का कि हमारा है। पूरे जीवन इसी भ्राँति में हम जीते हैं। कुछ हमारा है-मालकियत, स्वामित्व-मेरा है। ईश्वर का है सब कुछ, तो फिर मेरे मैं को खड़े होने की कोई जगह नहीं रह जाती

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