बुधवार, 3 नवंबर 2010

पिघलना, मिट जाना और विलुप्त हो जाना ही अस्तित्वहीनता है


प्यारे ओशो, जब तन्का द्वारा बुद्ध की काष्ठ-मूर्ति को जलाए जाने की घटना के बारे में तेन्जिक से पूछा गया, तो उसने उत्तर दिया: "जब शीत अधिक होती है तो हम चूल्हे की आग के चारों ओर इकट्ठे हो जाते हैं'।' "क्या वह गलत था अथवा नहीं? ' भिक्षु ने जोर देकर पूछा।
तेन्जीकू ने कहा: "जब गर्मी लगती है तो हम घाटी के बांसवन में जाकर बैठ जाते हैं।'

आगे पढ़े ............. यहाँ क्लिक करे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें